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हुआन रमोन हिमेने

बचपन से ही कल्पनाशील और स्वप्नदर्शी हुआन की दुनिया सौन्दर्य और दूरबीन पर टिकी थी। हुआन बदसूरती को बर्दाश्त नहीं कर पाते थे और सौन्दर्य पर जान लुटाते थे। मृत्यु के बारे में सुनकर और किसी का भी मृत-शरीर देखकर वे डर जाते थे। 1893 में बारह वर्ष की उम्र में उन्होंने जीसस कॉलेज में दाखिला लिया और पन्द्रह वर्ष की उम्र में हाई स्कूल की शिक्षा पूरी कर ली। इसके बाद वे वकालत करने के लिए सेविले विश्वविद्यालय की लॉ फ़ैकेल्टी में आगे पढ़ाई करने लगे, पर दो साल बाद ही 1898 में वे पढ़ाई बीच में ही अधूरी छोड़कर पूरी तरह से कविता में डूब गए। उसी साल अगस्त में ’एल गातो नेग्रो’ यानी ’काली बिल्ली’ नामक एक पत्रिका में उनकी एक लम्बी कविता प्रकाशित हुई। सन 1900 में उन्हें कवि फ़्रांसिसको विलियाएसपेसोई और कवि रूबेन दारिओ ने मद्रीद आने का निमन्त्रण भेजा, जहाँ उनकी मुलाक़ात स्पानी भाषा के आधुनिकतावादी (माडर्निस्ट) कवियों से करवाई। इसके बाद वे पूरी तरह से स्पेन की माडर्न कवियों की कविताओं में दिलचस्पी लेने लगे। उन्होंने अर्जेण्टीना के कवि लिओपल्दो लोगानेसा, मैक्सिको के कवि अमादो नेरवो और मैनुएल दिआसा रोद्रिगेसा जैसे माडर्निस्ट कवियों की रचनाओं का विशेष रूप से अध्ययन किया। 03 जुलाई 1900 के दिन अचानक उनके पिता की मृत्यु हो गई। हुआन बेहद आहत हुए क्योंकि पिता से वे गहरे जुड़े हुए थे। कुछ महीनों के बाद ही उन्हें साँस की बीमारी हो गई। वे लगातार ये सोचने लगे थे कि अपने पिता की तरह ही उनका भी देहान्त हो जाएगा। पिता पर बैंक का भारी कर्ज़ लदा था। अदालत के फ़ैसले के बाद बैंक ने उनकी सारी सम्पत्ति कुर्क कर ली। इन घटनाओं के बाद हुआन रमोन हिमेने अवसाद में डूब गए। उन्हें मनोरोगी बताकर पागलख़ाने में डाल दिया गया। धीरे-धीरे पागलख़ाने के डॉक्टर लालन के साथ उनकी घनिष्ठता हो गई और उन्होंने डॉक्टर के घर आना-जाना शुरू कर दिया। हुआन हिमेने को डॉक्टर की बिटिया मार्ता से प्रेम हो गया। मार्ता के लिए लिखी अपनी कविताओं में वे उसे फ़्रांसिन के नाम से पुकारते हैं। वहीं डा० लालन की निजी लाइब्रेरी में फ़्रांसीसी प्रतीकवादी कवियों बादलेयर, वेरलेन और मलार्मे की कविताएँ पढ़ीं। जब हुआन मानसिक रूप से थोड़ा स्वस्थ हो गए तो उन्हें मद्रीद के रोज़ारियो सेनिटोरियम में भेज दिया गया। वे सेनिटोरियम में काम करने वाली क़रीब-क़रीब हर नर्स से प्यार करने लगे। उस दौर की अपनी कविताओं में उन्होंने जिन दो नर्सों का बार-बार ज़िक्र किया है, उनके नाम हैं — मरिया दे पिलार दे हेस्सुस और बेली एरनान्देस पीनसन।

1902 में उन्होंने कवि अवगूस्तिन कैरोल के साथ मिलकर माडर्निस्ट कविता की ’हैलियस नामक एक पत्रिका का प्रकाशन शुरू कर दिया।पत्रिका में कविताओं के साथ-साथ समीक्षाएँ और आलोचनात्मक लेख भी छपते थे। स्पानी भाषा के लगभग सभी बड़े कवि पत्रिका के साथ सहयोग करते थे। अपनी इसी पत्रिका में उसी साल उन्होंने अपनी लम्बी कविता ’एरियास ट्रिस्टेस’ (उदास धुन) प्रकाशित की। कुछ ही समय बाद उन्होंने सेनिटोरियम छोड़कर मानसिक रोगों के डॉक्टर लुईसू सिमार्रो के साथ रहना शुरू कर दिया। 1903 में उनकी मुलाक़ात एक उत्तरी अमेरिकी महिला लुईज़ा ग्रिम से हुई। लुईज़ा मैक्सिको में काम करने वाले एक स्पानी व्यापारी की पत्नी थीं। वे बेहद ख़ूबसूरत और काफ़ी पढ़ी-लिखी महिला थीं। हुआन हिमेने को उनसे प्यार हो गया। वे लुईज़ा से विवाह करने के सपने देखने लगे। लेकिन लुईज़ा हिमेने से प्यार नहीं करती थी। हाँ, इस परिचय को हिमेने को इतना फ़ायदा ज़रूर हुआ कि लुईज़ा ने उन्हें भारी संख्या में अग्रेज़ी कविता से जुड़ी किताबें भेंट में दीं। और उन्होंने अपने भाइयों एलबेर्तो हिमेने और फ़्रोद हिमेने के साथ मिलकर अँग्रेज़ी के कवि शैली की ’हाइमन टू स्प्रीचुएल ब्युटी’ कविता का अनुवाद करना शुरू कर दिया। 1913 में हिमेने ने फ़्रांस और अमेरिका की यात्रा की। अमेरिका में उनका परिचय भारतीय कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं की अनुवादिका और लेखिका ज़ेनोबियो कैम्परुबी से हुआ। फिर 1916 में दोनों ने विवाह कर लिया और ज़ेनोबियो कैम्परुबी हिमेने की सहायिका बन गईं। स्पेन में गृहयुद्ध शुरू होने के बाद दोनों क्यूबा चले गए, जहाँ से वे पहले अमेरिका में रहने के लिए गए और १९४६ में दोनों प्यूर्तो रिको में आकर रहने लगे। वे एक स्थानीय यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगे थे। कवि हिमेने को फिर अवसाद ने घेर लिया। उन्हें फिर से कुछ महीने अस्पताल में बिताने पड़े। 1956 में कैंसर की वजह से उनकी पत्नी का देहान्त हो गया। हिमेने उनसे अलगाव झेल नहीं पाए और उनकी याद में घुलने लगे। दो साल बाद उसी अस्पताल में हिमेने का भी निधन हो गया, जहाँ उनकी पत्नी का देहान्त हुआ था।