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"क्या तकल्लुफ करे ये कहने में / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर
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जो भी खुश है हम उससे जलते हैं | जो भी खुश है हम उससे जलते हैं | ||
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हम सँभाले नहीं सँभलते हैं | हम सँभाले नहीं सँभलते हैं | ||
09:25, 12 दिसम्बर 2010 का अवतरण
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उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहाँ टालने से टलते हैं
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं
है उसे दूर का सफ़र दरपेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं
है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं
हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं
तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं