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"सर ये फोड़िए / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर
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सर येह फोड़िए अब नदामत में | सर येह फोड़िए अब नदामत में | ||
नीन्द आने लगी है फुरकत में | नीन्द आने लगी है फुरकत में | ||
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+ | हैं दलीलें तेरे खिलाफ मगर | ||
+ | सोचता हूँ तेरी हिमायत में | ||
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+ | इश्क को दरम्यान ना लाओ के मैं | ||
+ | चीखता हूँ बदन की उसरत में | ||
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+ | ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम | ||
+ | रूठते अब भी है मुर्रबत में | ||
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+ | वो जो तामीर होने वाली थी | ||
+ | लग गई आग उस इमारत में | ||
वो खला है कि सोचता हूँ मैं | वो खला है कि सोचता हूँ मैं | ||
उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में | उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में | ||
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+ | ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी | ||
+ | दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में | ||
मेरे कमरे का क्या बया कि यहाँ | मेरे कमरे का क्या बया कि यहाँ | ||
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अब फकत आदतो की वर्जिश है | अब फकत आदतो की वर्जिश है | ||
रूह शामिल नहीं शिकायत में | रूह शामिल नहीं शिकायत में | ||
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ऐ खुदा जो कही नहीं मौज़ूद | ऐ खुदा जो कही नहीं मौज़ूद | ||
क्या लिखा है हमारी किस्मत में | क्या लिखा है हमारी किस्मत में | ||
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10:00, 12 दिसम्बर 2010 का अवतरण
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सर येह फोड़िए अब नदामत में
नीन्द आने लगी है फुरकत में
हैं दलीलें तेरे खिलाफ मगर
सोचता हूँ तेरी हिमायत में
इश्क को दरम्यान ना लाओ के मैं
चीखता हूँ बदन की उसरत में
ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी है मुर्रबत में
वो जो तामीर होने वाली थी
लग गई आग उस इमारत में
वो खला है कि सोचता हूँ मैं
उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में
मेरे कमरे का क्या बया कि यहाँ
खून थूका गया शरारत में
रूह ने इश्क का फरेब दिया
ज़िस्म को ज़िस्म की अदावत में
अब फकत आदतो की वर्जिश है
रूह शामिल नहीं शिकायत में
ऐ खुदा जो कही नहीं मौज़ूद
क्या लिखा है हमारी किस्मत में