"पिणघट / सत्यप्रकाश जोशी" के अवतरणों में अंतर
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यप्रकाश जोशी |संग्रह=राधा / सत्यप्रकाश जोशी…) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | |||
− | |||
सांझ पड़या घर जांऊ रे कांन्ह | सांझ पड़या घर जांऊ रे कांन्ह |
15:25, 12 दिसम्बर 2010 का अवतरण
सांझ पड़या घर जांऊ रे कांन्ह
तौ मावड़ पूछै-मटकी कठै ?
धीवड़ थारी मटकी कठै ?
म्हैं छिण एक
आंख्यां नितार
सूना में सूनी सूनी जोऊं,
मावड़ नै देखूं
तौ सांमी देख्यौ नीं जावै
कांई मिस करूं ?
कांई बात बणाऊं ?
म्हारी हेजळी जांमण नै
कीकर भरमांऊ ?
कीकर बिलमांऊ ?
म्हारी रातादेई मां
कुण जांणै कांई समझै ?
मावड़ सूं कद छानी रैवै बेटी री बातां ?
नित नवी मटकी सूंपै
मीठी भोळावण नित, मीठी सीखां देवै।
पण म्हैं थनै कद जतळायौ रै कांन्ह !
कद जतळायो ?
आज मन रौ म्यांनौ दरसाऊं
अचपळा कांन्ह !
जद म्हारी मटकी फूटै
तौ जांणै नेह रा बादळ बूठै,
जांणै प्रीत रौ पांणी बरसै।
फूटी मटकी सूं जद धरौळा छूटै
तो जांणै हेत रा झरणा तूठै।
भींज्योड़ा बसण जद म्हारी देह सूं लिपट जावै
तौ म्हारा मन नै यूं लखावै
म्हारौ कोडीलौ कांन्ह म्हनैं बाथां में भरली।
थारी बाथां रौ ओ बंधण
म्हनै जुग रै बंधण सूं
मुगती देवै।
पण सांझ पड़़़यां घर जांऊ रे कांन्ह !
तौ मावड़ पूछै-मटकी कठै ?
धीवड़ थारी मटकी कठै ?