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"अंगूठाभर हैं नन्हे मियाँ/ प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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<poem>'''दे रहा हूँ शुभकामनाएँ'''
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भय से थरथराती हुई आँखों में
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कई रात गुजारने के बाद
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हाथ-पांव समेट रहे हैं
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गुजरात के नन्हे मियाँ
  
बच्चों की मुस्कान को
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पिछली चार पीढ़ियों से
किसानों के खलिहान को
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पटाखों में रचे-बसे नन्हे मियॉ कहते हैं
औरतों के आसमान को
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बच्चे खुदा की नियामत हैं
चिड़ियों की उड़ान को
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इनकी निगाहों से ही चुराकर भरता हूँ पटाखों में रोशनी
                दे रहा हूँ शुभकामनाएँ।
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जब बच्चे ही नहीं रहे तब कहाँ से आएगी पटाखों में रोशनी
  
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अब वे नहीं बनाएंगे पटाखे
  
देश के विधान को
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नन्हे मियाँ के पटाखे न बनाने से
संसद के ईमान को
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कहीं कुछ भी नहीं बिगड़ेगा
जीवन के संविधान को
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बाजार का पेट तो भर जाएगा
मनुष्य के सम्मान को
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चीन और अमरीका के पटाखों से
                दे रहा हूँ शुभकामनाएँ।
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प्रेम के उफान को
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कभी-कभार उनके घर के सामने से गुजरते हुए
हृदय की जुबान को
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अचानक ठहर जाऐंगे किसी के कदम
संस्कृति की आन को
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और उसके कानों में गूँजेगी वही आवाज
धर्म के इमान को
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कल ही तो दिया था / आज फिर आ गया
दे रहा हूँ शुभकामनाएँÄ
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फोकट की लत बहुत बुरी होती है/ले अब मत अइयो .......
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हाँ सम्भाल के जलइयों
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बहुत खतरनाक खेल है बारूद का
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इस कविता में एक सुधार जरूरी है  मित्रों
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नन्हे मियाँ केवल गुजरात के नहीं हैं
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वे मेरठ के भी थे
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मुरादाबाद के भी और मुम्बई के भी
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लहौर और इस्लामाबाद में भी रहते हैं
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नन्हे मियॉ
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जो अब नहीं बनाएंगे पटाखे
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नन्हे मियॉ
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न तो मुसलमान हैं न हिन्दू
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सिर्फ अंगूठाभर हैं
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जिस पर पुती हुई है स्याही ।
  
कलैण्डर के दिनमान को
 
इतिहास के वर्तमान को
 
भविष्य के अनुमान को
 
भोर के अनुसंधान को
 
              दे रहा हूँ शुभकामनाएँ।
 
 
 
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17:53, 13 दिसम्बर 2010 का अवतरण

अंगूठा भर हैं नन्हे मियाँ

भय से थरथराती हुई आँखों में
कई रात गुजारने के बाद
बारूद में भुने हुए बच्चों के
हाथ-पांव समेट रहे हैं
गुजरात के नन्हे मियाँ

पिछली चार पीढ़ियों से
पटाखों में रचे-बसे नन्हे मियॉ कहते हैं
बच्चे खुदा की नियामत हैं
इनकी निगाहों से ही चुराकर भरता हूँ पटाखों में रोशनी
जब बच्चे ही नहीं रहे तब कहाँ से आएगी पटाखों में रोशनी

अब वे नहीं बनाएंगे पटाखे

नन्हे मियाँ के पटाखे न बनाने से
कहीं कुछ भी नहीं बिगड़ेगा
बाजार का पेट तो भर जाएगा
चीन और अमरीका के पटाखों से

कभी-कभार उनके घर के सामने से गुजरते हुए
अचानक ठहर जाऐंगे किसी के कदम
और उसके कानों में गूँजेगी वही आवाज
कल ही तो दिया था / आज फिर आ गया
फोकट की लत बहुत बुरी होती है/ले अब मत अइयो .......
हाँ सम्भाल के जलइयों
बहुत खतरनाक खेल है बारूद का

इस कविता में एक सुधार जरूरी है मित्रों
नन्हे मियाँ केवल गुजरात के नहीं हैं
वे मेरठ के भी थे
मुरादाबाद के भी और मुम्बई के भी
लहौर और इस्लामाबाद में भी रहते हैं
नन्हे मियॉ
जो अब नहीं बनाएंगे पटाखे

नन्हे मियॉ
न तो मुसलमान हैं न हिन्दू
सिर्फ अंगूठाभर हैं
जिस पर पुती हुई है स्याही ।