भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक जनवरी की आधी रात को / प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pradeepmishra (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>'''एक जनवरी की आधी रात को''' एक ने जूठन फेंकने से पहले केक के बचे हु…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:54, 13 दिसम्बर 2010 का अवतरण
एक जनवरी की आधी रात को
एक ने
जूठन फेंकने से पहले
केक के बचे हुए टुकड़े को
सम्भालकर रख लिया किनारे
दूसरा जो दारू के गिलास धो रहा था
खंगाल का पहला पानी अलग बोतल में
इकट्ठा कर रहा था
तीसरे ने
नव वर्ष की पार्टी की तैयारी करते समय
कुछ मोमबत्तियाँ और पटाखे
अपने जेब के हवाले कर लिए थे
तीनों एक जनवरी की आधी रात को
पटाखे इस तरह फोड़ें
जैसे लोगों ने कल जो मनाया
वह झूठ था
आज है असली नव वर्ष
दारू के धोवन से भरी बोतलों का
ढक्कन यूँ खोला
जैसे शेम्पेन की बोतलों के ओपेनर
उनकी जेबों में ही रहते हैं
जूठे केक के टुकड़े खाते हुए
एक दूसरे को
नव वर्ष की शुभकामनाएँ दी
पीढ़ियों से वे सारे त्यौहार
इसी तरह मनाते आ रहे हैं
कलैण्डर और पंचांग की तारीखों को
चुनौती देते हुए।