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"अंगूठाभर हैं नन्हे मियाँ/ प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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<poem>'''अंगूठाभर हैं नन्हे मियाँ'''
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भय से थरथराती हुई आँखों में  
 
भय से थरथराती हुई आँखों में  
कई रात गुजारने के बाद
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कई रात गुज़ारने के बाद
 
बारूद में भुने हुए बच्चों के
 
बारूद में भुने हुए बच्चों के
हाथ-पांव समेट रहे हैं  
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हाथ-पाँव समेट रहे हैं  
 
गुजरात के नन्हे मियाँ
 
गुजरात के नन्हे मियाँ
  
 
पिछली चार पीढ़ियों से  
 
पिछली चार पीढ़ियों से  
 
पटाखों में रचे-बसे नन्हे मियॉ कहते हैं
 
पटाखों में रचे-बसे नन्हे मियॉ कहते हैं
बच्चे खुदा की नियामत हैं
+
बच्चे ख़ुदा की नियामत हैं
इनकी निगाहों से ही चुराकर भरता हूँ पटाखों में रोशनी
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इनकी निग़ाहों से ही चुराकर भरता हूँ पटाख़े में रोशनी
जब बच्चे ही नहीं रहे तब कहाँ से आएगी पटाखों में रोशनी
+
जब बच्चे ही नहीं रहे तब कहाँ से आएगी पटाख़े में रोशनी
  
अब वे नहीं बनाएंगे पटाखे
+
अब वे नहीं बनाएँगे पटाख़े
  
नन्हे मियाँ के पटाखे न बनाने से  
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नन्हे मियाँ के पटाख़े न बनाने से  
 
कहीं कुछ भी नहीं बिगड़ेगा
 
कहीं कुछ भी नहीं बिगड़ेगा
बाजार का पेट तो भर जाएगा
+
बाज़ार का पेट तो भर जाएगा
चीन और अमरीका के पटाखों से
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चीन और अमरीका के पटाख़ों से
  
कभी-कभार उनके घर के सामने से गुजरते हुए
+
कभी-कभार उनके घर के सामने से गुज़रते हुए
अचानक ठहर जाऐंगे किसी के कदम
+
अचानक ठहर जाएँगे किसी के क़दम
और उसके कानों में गूँजेगी वही आवाज
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और उसके कानों में गूँजेगी वही आवाज़
 
कल ही तो दिया था / आज फिर आ गया
 
कल ही तो दिया था / आज फिर आ गया
 
फोकट की लत बहुत बुरी होती है/ले अब मत अइयो .......  
 
फोकट की लत बहुत बुरी होती है/ले अब मत अइयो .......  
हाँ सम्भाल के जलइयों
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हाँ सम्भाल के जलइयो
 
बहुत खतरनाक खेल है बारूद का
 
बहुत खतरनाक खेल है बारूद का
  
इस कविता में एक सुधार जरूरी है  मित्रों
+
इस कविता में एक सुधार जरूरी है, मित्रो !
 
नन्हे मियाँ केवल गुजरात के नहीं हैं
 
नन्हे मियाँ केवल गुजरात के नहीं हैं
 
वे मेरठ के भी थे
 
वे मेरठ के भी थे
 
मुरादाबाद के भी और मुम्बई के भी  
 
मुरादाबाद के भी और मुम्बई के भी  
लहौर और इस्लामाबाद में भी रहते हैं
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लाहौर और इस्लामाबाद में भी रहते हैं
 
नन्हे मियॉ
 
नन्हे मियॉ
जो अब नहीं बनाएंगे पटाखे
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जो अब नहीं बनाएँगे पटाख़े
  
 
नन्हे मियॉ
 
नन्हे मियॉ
 
न तो मुसलमान हैं न हिन्दू
 
न तो मुसलमान हैं न हिन्दू
सिर्फ अंगूठाभर हैं  
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सिर्फ अँगूठाभर हैं  
 
जिस पर पुती हुई है स्याही ।  
 
जिस पर पुती हुई है स्याही ।  
 
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22:37, 13 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

भय से थरथराती हुई आँखों में
कई रात गुज़ारने के बाद
बारूद में भुने हुए बच्चों के
हाथ-पाँव समेट रहे हैं
गुजरात के नन्हे मियाँ

पिछली चार पीढ़ियों से
पटाखों में रचे-बसे नन्हे मियॉ कहते हैं
बच्चे ख़ुदा की नियामत हैं
इनकी निग़ाहों से ही चुराकर भरता हूँ पटाख़े में रोशनी
जब बच्चे ही नहीं रहे तब कहाँ से आएगी पटाख़े में रोशनी

अब वे नहीं बनाएँगे पटाख़े

नन्हे मियाँ के पटाख़े न बनाने से
कहीं कुछ भी नहीं बिगड़ेगा
बाज़ार का पेट तो भर जाएगा
चीन और अमरीका के पटाख़ों से

कभी-कभार उनके घर के सामने से गुज़रते हुए
अचानक ठहर जाएँगे किसी के क़दम
और उसके कानों में गूँजेगी वही आवाज़
कल ही तो दिया था / आज फिर आ गया
फोकट की लत बहुत बुरी होती है/ले अब मत अइयो .......
हाँ सम्भाल के जलइयो
बहुत खतरनाक खेल है बारूद का

इस कविता में एक सुधार जरूरी है, मित्रो !
नन्हे मियाँ केवल गुजरात के नहीं हैं
वे मेरठ के भी थे
मुरादाबाद के भी और मुम्बई के भी
लाहौर और इस्लामाबाद में भी रहते हैं
नन्हे मियॉ
जो अब नहीं बनाएँगे पटाख़े

नन्हे मियॉ
न तो मुसलमान हैं न हिन्दू
सिर्फ अँगूठाभर हैं
जिस पर पुती हुई है स्याही ।