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"बुरे दिनों के कलैण्डरों में/ प्रदीप मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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भोजन में होती है भूख
 
भोजन में होती है भूख
नफरत में होता है प्यार
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रेगिस्तान में होती हैं नदियाँ
 
रेगिस्तान में होती हैं नदियाँ

22:41, 13 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

जिस तरह से

मृत्यु के गर्भ में होता है जीवन
नास्तिक के हृदय में रहती है आस्था

नमक में होती है मिठास
भोजन में होती है भूख
नफ़रत में होता है प्यार

रेगिस्तान में होती हैं नदियाँ
हिमालय में होता है सागर

उसी तरह से
अच्छे दिनों की तारीखें भी होतीं हैं
बुरे दिनों के कलैण्डरों में ही ।