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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
 
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : मैं अकेला<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक :महबूब-ए-मुल्क की हवा बदल रही है<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[कुमार पवन]]</td>
 
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मैं अकेला;
+
महबूब-ए-मुल्क की हवा बदल रही है,
देखता हूँ, आ रही
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ताजीरात-ए-हिंद की दफ़ा बदल रही है.
      मेरे दिवस की सान्ध्य बेला ।
+
  
पके आधे बाल मेरे
+
अस्मत लुटी अवाम की कहकहो के साथ,
हुए निष्प्रभ गाल मेरे,
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और अफज़लो की सज़ा बदल रही है.
चाल मेरी मन्द होती आ रही,
+
      हट रहा मेला ।
+
  
जानता हूँ, नदी-झरने
+
बारूदी बू आ रही है नर्म हवाओ में,
जो मुझे थे पार करने,
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कोयल की भी मीठी ज़बाँ बदल रही है.
कर चुका हूँ, हँस रहा यह देख,
+
      कोई नहीं भेला ।
+
  
शब्दार्थ:
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सुबह की हवाख़ोरी भी हुई मुश्किल,
भेला = पुराने ढंग की नाव
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जलते हुए टायर से सबा बदल रही है.
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सियासत ने हर पाक को नापाक कर दिया,
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पंडित की पूजा मुल्ला की अजाँ बदल रही है.
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कहने को वह दिल हमी से लगाए है,
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मगर मुहब्बत की वज़ा बदल रही है.
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दुआ करो चमन की हिफ़ाजत के वास्ते,
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बागबानो की अब रजा बदल रही है।
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निगहबानी करना बच्चो की ऐ खुदा,
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दहशत में मेरे शहर की फ़ज़ा बदल रही है.
 
   
 
   
 
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11:31, 14 दिसम्बर 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक :महबूब-ए-मुल्क की हवा बदल रही है
  रचनाकार: कुमार पवन
महबूब-ए-मुल्क की हवा बदल रही है,
ताजीरात-ए-हिंद की दफ़ा बदल रही है.

अस्मत लुटी अवाम की कहकहो के साथ,
और अफज़लो की सज़ा बदल रही है.

बारूदी बू आ रही है नर्म हवाओ में,
कोयल की भी मीठी ज़बाँ बदल रही है.

सुबह की हवाख़ोरी भी हुई मुश्किल,
जलते हुए टायर से सबा बदल रही है.

सियासत ने हर पाक को नापाक कर दिया,
पंडित की पूजा मुल्ला की अजाँ बदल रही है.

कहने को वह दिल हमी से लगाए है,
मगर मुहब्बत की वज़ा बदल रही है.

दुआ करो चमन की हिफ़ाजत के वास्ते,
बागबानो की अब रजा बदल रही है।

निगहबानी करना बच्चो की ऐ खुदा,
दहशत में मेरे शहर की फ़ज़ा बदल रही है.