भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इंसान की मुकम्मिल पहचान मेरे राम / पवन कुमार मिश्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
  
 
'''शिवाला की आरती के प्रान मेरे राम,'''
 
'''शिवाला की आरती के प्रान मेरे राम,'''
 +
 
'''रमजान की अज़ान के भगवान् मेरे राम।'''
 
'''रमजान की अज़ान के भगवान् मेरे राम।'''
  
पंक्ति 32: पंक्ति 33:
  
  
वतन में मुश्किलों का तूफ़ान मेरे राम,
+
'''वतन में मुश्किलों का तूफ़ान मेरे राम,
  
फिर से पुकारता है हिन्दुस्तान मेरे राम।'''
+
'''फिर से पुकारता है हिन्दुस्तान मेरे राम।'''

10:34, 15 दिसम्बर 2010 का अवतरण

मुल्क की उम्मीद-ओ -अरमान मेरे राम,

इंसान की मुकम्मिल पहचान मेरे राम।


शिवाला की आरती के प्रान मेरे राम,

रमजान की अज़ान के भगवान् मेरे राम।


काशी काबा और चारो धाम मेरे राम,

ज़मीन पे अल्लाह का इक नाम मेरे राम।


दर्द खुद लिया दिया मुसकान मेरे राम,

ज़हान में मुहब्बते -फरमान मेरे राम।


रहमत के फ़रिश्ते रहमान मेरे राम,

सौ बार जाऊ तुझ पर कुरबान मेरे राम।


हर करम पे रखे ईमान मेरे राम,

तारीख में है आफताब नाम मेरे राम।


वतन में मुश्किलों का तूफ़ान मेरे राम,

फिर से पुकारता है हिन्दुस्तान मेरे राम।