"जीवन का झरना / आरसी प्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर
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− | जीवन क्या है निर्झर है | + | यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है । |
− | मस्ती ही इसका पानी है | + | सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है । |
− | सुख दुख के दोनों तीरों से | + | |
− | चल रहा राह मनमानी है | + | कब फूटा गिरि के अंतर से ? किस अंचल से उतरा नीचे ? |
+ | किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे ? | ||
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+ | निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है ! | ||
+ | धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है । | ||
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+ | बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता, | ||
+ | बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता । | ||
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+ | तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है । | ||
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+ | निर्झर कहता है, बढ़े चलो ! देखो मत पीछे मुड़ कर ! | ||
+ | यौवन कहता है, बढ़े चलो ! सोचो मत होगा क्या चल कर ? | ||
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+ | चलना है, केवल चलना है ! जीवन चलता ही रहता है ! | ||
+ | रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है ! | ||
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11:42, 16 दिसम्बर 2010 का अवतरण
यह जीवन क्या है ? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है ।
सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है ।
कब फूटा गिरि के अंतर से ? किस अंचल से उतरा नीचे ?
किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे ?
निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है !
धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है ।
बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता,
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता ।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं; नाविक तट पर पछताता है ।
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है ।
निर्झर कहता है, बढ़े चलो ! देखो मत पीछे मुड़ कर !
यौवन कहता है, बढ़े चलो ! सोचो मत होगा क्या चल कर ?
चलना है, केवल चलना है ! जीवन चलता ही रहता है !
रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है !