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"नहीं जो दिल में जगह तो नज़र में रहने दे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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08:09, 17 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
नहीं जो दिल में जगह तो नज़र में रहने दो
मेरी हयात को अपने असर में रहने दो
कोई तो ख़्वाब मेरी रात का मुक़द्दर हो
कोई तो अक्स मेरी चश्म-ए-तर में रहने दो
मैं अपनी सोच को तेरी गली मैं छोड़ आया
तो अपनी याद को मेरे हुनर में रहने दो
ये मंजिलें तो किसी और का मुक़द्दर हैं
मुझे बस अपने जूनून के सफ़र में रहने दो
हकीक़तें तो बहुत तल्ख़ हो गयी हैं "फ़राज़"
मेरे वजूद को ख़्वाबों के घर में रहने दो