भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Bohra.sankalp (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अहमद फ़राज़ | |रचनाकार=अहमद फ़राज़ | ||
+ | |संग्रह=ज़िंदगी ! ऐ ज़िंदगी ! / फ़राज़ | ||
}} | }} | ||
[[Category:गज़ल]] | [[Category:गज़ल]] |
22:29, 17 दिसम्बर 2010 का अवतरण
तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है
के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है
मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं
के जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है
वो दूर हो तो बजा तर्क-ए-दोस्ती का ख़याल
वो सामने हो तो कब इख़्तियार अपना है
ज़माने भर के दुखों को लगा लिया दिल से
इस आसरे पे के इक ग़मगुसार अपना है
"फ़राज़" राहत-ए-जाँ भी वही है क्या कीजे
वो जिस के हाथ से सीनाफ़िग़ार अपना है