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"गिले फ़िज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुये / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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ये क़ुर्बतों में अजब फ़ासले पड़े कि मुझे <br> | ये क़ुर्बतों में अजब फ़ासले पड़े कि मुझे <br> | ||
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वो हिलागर हैं जो मजबूरियाँ शुमार करें <br> | वो हिलागर हैं जो मजबूरियाँ शुमार करें <br> | ||
चिराग़ हम ने जलायें हवा के होते हुये <br><br> | चिराग़ हम ने जलायें हवा के होते हुये <br><br> | ||
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कि दिल गिरिफ़्ता रहा दिलरुबा के होते हुए <br><br> | कि दिल गिरिफ़्ता रहा दिलरुबा के होते हुए <br><br> | ||
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+ | कुर्बत = करीबी, हिलागर = जो बहाने बनाये, कासा-ब-दस्त = हाथ में कटोरा लिये हुए,<br> | ||
+ | हुमा = स्वर्ग का पंछी (सौभाग्य की निशानी), |
22:00, 1 अप्रैल 2008 का अवतरण
गिले फ़ुज़ूल थे अहद-ए-वफ़ा के होते हुए
सो चुप रहा सितम-ए-नारवां के होते हुए
ये क़ुर्बतों में अजब फ़ासले पड़े कि मुझे
है आशना की तलब आशना के होते हुए
वो हिलागर हैं जो मजबूरियाँ शुमार करें
चिराग़ हम ने जलायें हवा के होते हुये
न कर किसी पे भरोसा के कश्तियाँ डूबीं हैं
ख़ुदा के होते हुये नाख़ुदा के होते हुये
किसे ख़बर है कि कासा-ब-दस्त फिरते हैं
बहुत से लोग सरों पर हुमा के होते हुए
"फ़राज़" ऐसे भी लम्हें कभी कभी आये
कि दिल गिरिफ़्ता रहा दिलरुबा के होते हुए
कुर्बत = करीबी, हिलागर = जो बहाने बनाये, कासा-ब-दस्त = हाथ में कटोरा लिये हुए,
हुमा = स्वर्ग का पंछी (सौभाग्य की निशानी),