"जो अन्धों की स्मृति में नहीं है / अजेय" के अवतरणों में अंतर
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हम तब भी यहीं थे | हम तब भी यहीं थे | ||
जब ये पहाड़ नहीं थे | जब ये पहाड़ नहीं थे | ||
फिर ये पहाड़ यहाँ खड़े हुए | फिर ये पहाड़ यहाँ खड़े हुए | ||
फिर हम ने उन पर चढ़ना सीखा | फिर हम ने उन पर चढ़ना सीखा | ||
− | और उन पर सुन्दर | + | और उन पर सुन्दर बस्तियाँ बसाईं । |
भूख हमे तब भी लगती थी | भूख हमे तब भी लगती थी | ||
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फिर हम ने शब्द इकट्ठे किए | फिर हम ने शब्द इकट्ठे किए | ||
उन्हे दर्ज करना सीखा | उन्हे दर्ज करना सीखा | ||
− | और | + | और ख़ूबसूरत कविताएँ रचीं |
प्यार भी हम ऐसे ही करते थे | प्यार भी हम ऐसे ही करते थे | ||
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और हमारी नींद में शोर ..... | और हमारी नींद में शोर ..... | ||
ज़िन्दा हथेलियाँ होती थीं | ज़िन्दा हथेलियाँ होती थीं | ||
− | ज़िन्दा ही | + | ज़िन्दा ही त्वचाएँ |
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फिर पता नहीं क्या हुआ था | फिर पता नहीं क्या हुआ था | ||
अचानक हमने अपना वह स्पर्श खो दिया | अचानक हमने अपना वह स्पर्श खो दिया | ||
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क्या हुआ था ? | क्या हुआ था ? | ||
− | + | ’केलंग, 27.08.2010 | |
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11:13, 25 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
हमें याद है
हम तब भी यहीं थे
जब ये पहाड़ नहीं थे
फिर ये पहाड़ यहाँ खड़े हुए
फिर हम ने उन पर चढ़ना सीखा
और उन पर सुन्दर बस्तियाँ बसाईं ।
भूख हमे तब भी लगती थी
जब ये चूल्हे नहीं थे
फिर हम ने आकाश से आग को उतारा
और स्वादिष्ट पकवान बनाए
ऐसी ही हँसी आती थी
जब कोई विदूषक नहीं जन्मा था
तब भी नाचते और गाते थे
फिर हम ने शब्द इकट्ठे किए
उन्हे दर्ज करना सीखा
और ख़ूबसूरत कविताएँ रचीं
प्यार भी हम ऐसे ही करते थे
यही खुमारी होती थी
लेकिन हमारे सपनों मे शहर नहीं था
और हमारी नींद में शोर .....
ज़िन्दा हथेलियाँ होती थीं
ज़िन्दा ही त्वचाएँ
फिर पता नहीं क्या हुआ था
अचानक हमने अपना वह स्पर्श खो दिया
और फिर धीरे धीरे दृष्टि भी !
बिल्कुल याद नहीं पड़ता
क्या हुआ था ?
’केलंग, 27.08.2010