भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"एक अच्छा गाँव / अजेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>एक अच्छे आदमी की तरह एक अच्छा गाँव भी एक बहुचर्चित गाँव नहीं हो…)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<poem>एक अच्छे आदमी की तरह  
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार=अजेय
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
एक अच्छे आदमी की तरह  
 
एक अच्छा गाँव भी  
 
एक अच्छा गाँव भी  
 
एक बहुचर्चित गाँव नहीं होता.  
 
एक बहुचर्चित गाँव नहीं होता.  
पंक्ति 7: पंक्ति 14:
 
अपनी ज़िन्दगी के पहाड़े गुनगुनाता
 
अपनी ज़िन्दगी के पहाड़े गुनगुनाता
 
अपनी खड़िया से  
 
अपनी खड़िया से  
अपनी सलेट पट्टी पे  
+
अपनी सलेट-पट्टी पे  
 
अपने भविष्य की रेखाएँ उकेरता     
 
अपने भविष्य की रेखाएँ उकेरता     
 
वह एक गुमनाम  क़िस्म का गाँव होता है
 
वह एक गुमनाम  क़िस्म का गाँव होता है
पंक्ति 14: पंक्ति 21:
 
अपनी कुदाली से  
 
अपनी कुदाली से  
 
अपनी मिट्टी  गोड़ता  
 
अपनी मिट्टी  गोड़ता  
अपनी फसल खाता  
+
अपनी फ़सल खाता  
 
अपने जंगल के बियाबानों में पसरा  
 
अपने जंगल के बियाबानों में पसरा  
 
वह एक गुमसुम क़िस्म का गाँव होता है.  
 
वह एक गुमसुम क़िस्म का गाँव होता है.  
  
 
अपनी चटाईयों और टोकरियों पर   
 
अपनी चटाईयों और टोकरियों पर   
अपने सपनों की अल्पनाएं बुनता  
+
अपने सपनों की अल्पनाएँ बुनता  
 
अपने आँगन की दुपहरी में  
 
अपने आँगन की दुपहरी में  
 
अपनी खटिया पर लेटा  
 
अपनी खटिया पर लेटा  
 
अपनी यादों का हुक्का गुड़गुड़ाता  
 
अपनी यादों का हुक्का गुड़गुड़ाता  
चुपचाप अपने होने को जस्टिफाई करता  
+
चुपचाप अपने होने को जस्टिफ़ाई करता  
 
वह एक चुपचाप क़िस्म गाँव होता है.  
 
वह एक चुपचाप क़िस्म गाँव होता है.  
  
पंक्ति 34: पंक्ति 41:
 
एक अच्छे आदमी की तरह
 
एक अच्छे आदमी की तरह
  
[[केलंग , 21 मई 2010]]
+
केलंग , 21 मई 2010  
 
+
 
</poem>
 
</poem>

11:21, 25 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण

एक अच्छे आदमी की तरह
एक अच्छा गाँव भी
एक बहुचर्चित गाँव नहीं होता.

अपनी गति से आगे सरकता
अपनी पाठशाला में ककहरा सीखता
अपनी ज़िन्दगी के पहाड़े गुनगुनाता
अपनी खड़िया से
अपनी सलेट-पट्टी पे
अपने भविष्य की रेखाएँ उकेरता
वह एक गुमनाम क़िस्म का गाँव होता है

अपने कुँए से पानी पीता
अपनी कुदाली से
अपनी मिट्टी गोड़ता
अपनी फ़सल खाता
अपने जंगल के बियाबानों में पसरा
वह एक गुमसुम क़िस्म का गाँव होता है.

अपनी चटाईयों और टोकरियों पर
अपने सपनों की अल्पनाएँ बुनता
अपने आँगन की दुपहरी में
अपनी खटिया पर लेटा
अपनी यादों का हुक्का गुड़गुड़ाता
चुपचाप अपने होने को जस्टिफ़ाई करता
वह एक चुपचाप क़िस्म गाँव होता है.

एक अच्छे गाँव से मिलने
चुपचाप जाना पड़ता है
बिना किसी योजना की घोषणा किए
बिना नारा लगाए
बिना मुद्दे उछाले
बिना परचम लहराए
एक अच्छे आदमी की तरह

केलंग , 21 मई 2010