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"सबको न गले तुम यूँ लगाया करो 'श्रद्धा' / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर
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− | सबको न गले | + | सबको न गले ऐसे लगाया करो 'श्रद्धा' |
− | हमदर्द | + | हमदर्द करीब अपने बिठाया करो 'श्रद्धा' |
− | + | बैठो कभी जब अक्स तुम्हारा हो मुकाबिल | |
− | आँखें कभी | + | आँखें न कभी खुद से चुराया करो 'श्रद्धा' |
− | + | जाओ किसी मेले में, कभी बाग़ में टहलो | |
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो 'श्रद्धा' | हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो 'श्रद्धा' | ||
− | + | बन्दूक तमंचे ही दिखाते हो तुम अक्सर | |
− | + | बच्चों को परिंदे भी दिखाया करो 'श्रद्धा' | |
− | + | तुम दर्द की बरसात में रोजाना नहाओ | |
− | बरसात में मल-मल के नहाया करो 'श्रद्धा' | + | सूखे में भी मल-मल के नहाया करो 'श्रद्धा' |
− | + | आते ही, चले जाने की उलझन को लपेटे | |
− | आते हो तो इस तरह न आया करो 'श्रद्धा' | + | आते हो, तो इस तरह न आया करो 'श्रद्धा' |
− | + | रिश्तों को तिजारत की तराजू से न तोलो | |
− | कुछ त्याग-समर्पण भी | + | कुछ त्याग-समर्पण भी उठाया करो 'श्रद्धा' |
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15:34, 25 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
सबको न गले ऐसे लगाया करो 'श्रद्धा'
हमदर्द करीब अपने बिठाया करो 'श्रद्धा'
बैठो कभी जब अक्स तुम्हारा हो मुकाबिल
आँखें न कभी खुद से चुराया करो 'श्रद्धा'
जाओ किसी मेले में, कभी बाग़ में टहलो
हंस-हंस के भरम ग़म का मिटाया करो 'श्रद्धा'
बन्दूक तमंचे ही दिखाते हो तुम अक्सर
बच्चों को परिंदे भी दिखाया करो 'श्रद्धा'
तुम दर्द की बरसात में रोजाना नहाओ
सूखे में भी मल-मल के नहाया करो 'श्रद्धा'
आते ही, चले जाने की उलझन को लपेटे
आते हो, तो इस तरह न आया करो 'श्रद्धा'
रिश्तों को तिजारत की तराजू से न तोलो
कुछ त्याग-समर्पण भी उठाया करो 'श्रद्धा'