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"तेरे बगैर लगता है, अच्छा मुझे जहाँ नहीं / श्रद्धा जैन" के अवतरणों में अंतर

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सरसर<ref>रेगिस्तान की गर्म हवा</ref> लगे सबा<ref>ठंडी हवा</ref> मुझे, गर पास तू ए जाँ नहीं
 
सरसर<ref>रेगिस्तान की गर्म हवा</ref> लगे सबा<ref>ठंडी हवा</ref> मुझे, गर पास तू ए जाँ नहीं
  
मैं जल रही थी, मिट रही थी, इंतिहां थी प्यार की
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कल रात पास बैठे जो, हम राज़दार हो गए 
अंजान वो रहा मगर, क्यूंकी उठा धुआँ नहीं
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कल रात पास बैठे जो, हम राज़दार हो गये
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टूटा है ऐतमाद बस, ये तो कोई ज़ियाँ<ref>नुकसान</ref> नहीं
 
टूटा है ऐतमाद बस, ये तो कोई ज़ियाँ<ref>नुकसान</ref> नहीं
  
क्यूँ दिल मेरा ये, दिलजलों की नासेहा<ref>नसीहत</ref> सुने नहीं
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मैं जल रही थी मिट रही, थी इंतिहा ये प्यार की
माँगा करे दो प्यार के पल, उम्रे जाविदाँ<ref>लंबी ज़िंदगी</ref> नहीं
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अंजान वो रहा मगर, शायद उठा धुआँ नहीं  
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कुछ तो ज़रूर बात थी, मिलने के बाद अब तलक
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खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ  नहीं
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दुश्मन बना जहान क्यूँ , ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ
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मेरे तो राज़-राज़ हैं, कोई भी राज़दां  नहीं
  
अंदाज़-ए-सुखन और था “श्रद्धा” ज़ुदाई में तेरी
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अंदाज़-ए-फ़िक्र और था “श्रद्धा” ज़ुदाई में तेरी
लिख के ग़ज़ल में राज़ सब, कुछ भी किया बयाँ नहीं
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कह कर ग़ज़ल में राज़ सब, कुछ भी किया बयाँ नहीं
 
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11:28, 27 दिसम्बर 2010 का अवतरण

तेरे बगैर लगता है, अच्छा मुझे जहाँ नहीं
सरसर<ref>रेगिस्तान की गर्म हवा</ref> लगे सबा<ref>ठंडी हवा</ref> मुझे, गर पास तू ए जाँ नहीं

कल रात पास बैठे जो, हम राज़दार हो गए
टूटा है ऐतमाद बस, ये तो कोई ज़ियाँ<ref>नुकसान</ref> नहीं

मैं जल रही थी मिट रही, थी इंतिहा ये प्यार की
अंजान वो रहा मगर, शायद उठा धुआँ नहीं

कुछ तो ज़रूर बात थी, मिलने के बाद अब तलक
खुद की तलाश में हूँ मैं, लेकिन मेरे निशाँ नहीं

दुश्मन बना जहान क्यूँ , ऐसी फिज़ा बनी ही क्यूँ
मेरे तो राज़-राज़ हैं, कोई भी राज़दां नहीं

अंदाज़-ए-फ़िक्र और था “श्रद्धा” ज़ुदाई में तेरी
कह कर ग़ज़ल में राज़ सब, कुछ भी किया बयाँ नहीं

शब्दार्थ
<references/>