भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इसका मतलब ये तो नहीं दीवार उठे अंगनाई में / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद' संग्रह= }} {{KKCatGazal}} <poem> इसका मतलब य…) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | {{KKRachna | + | {{KKRachna |
− | रचनाकार= | + | |रचनाकार=रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी |
− | संग्रह= | + | |संग्रह= |
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatGhazal}} |
<poem> | <poem> | ||
इसका मतलब ये तो नहीं दीवार उठे अंगनाई में | इसका मतलब ये तो नहीं दीवार उठे अंगनाई में |
17:20, 28 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण
इसका मतलब ये तो नहीं दीवार उठे अंगनाई में
किसके घर में झगड़ा होता नहीं है भाई भाई में
मुस्तकबिल की फिक्र में रहने वालों ये भी याद रहे
परबत से टकराओगे तो गिरना होगा खाई में
पहले एक दिया जलता था सारा गांव चमकता था
आज चरागा घर घर में है,अँधियारा अंगनाई में
माजी क़ी तह नाप रहा हूँ यादों के पैमाने से
पेड़ हरा रहता है बरसों जड़ हो अगर गहराई में
लाख उजाले साथ हैं फिर भी सहमा सहमा रहता है
इस एहसासे तारीकी है आँखों की बीनाई में
आंसू आह कसक बेचैनी दर्दे जिगर और हिज्रो फ़िराक
कितनी भीड़ छुपा रखी है हमने इक तन्हाई में
अहले मोहब्बत यूं ही नहीं दिन रात तेरे गुण गाते हैं.
तेरी सूरत देख रहे हैं 'बेखुद' की रुसवाई में