भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कतरा रहें है आज कल पंछी उड़ान से / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>कतरा रहें हैं आज कल पंछी उडान से पत्थर बरस रहे हैं बहुत आसमान से …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:05, 28 दिसम्बर 2010 का अवतरण
कतरा रहें हैं आज कल पंछी उडान से
पत्थर बरस रहे हैं बहुत आसमान से
कब तक उठाऊँ बोझ भला इस जहान का
अक्सर ये पूछती है जमीं आसमान से
ग़ुरबत ने गम भुला दिया बेटे के क़त्ल का
लाचार बाप फिर गया अपने बयान से
ऊपर पहुँच के लोग भी छोटे बहुत लगे
कुछ अपने भी देखा था उनको ढलान से
मैं बेवफ़ा हूँ मान ये लूँगा हज़ार बार
लेकिन वो एक बार कहे तो जुबान से
फिर आज हँस न पायेगा शायद तू शाम तक
अख़बार पढ़ रहा है क्यों इस दर्जा ध्यान से