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"सबकी आँखों में झाँकता हूँ मै / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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21:26, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण

सबकी आँखों में झाँकता हूँ मैं
जाने क्या चीज ढूँढता हूँ मैं

अपनी सूरत से हो गयी नफरत
आईने यूं भी तोड़ता हूँ मैं

आदमी किस कदर हुआ तन्हा
तन्हा बैठा ये सोचता हूँ मैं

एक जंगल है वो भी जलता हुआ
अब जहाँ तक भी देखता हूँ मैं

कोई कहता है आदमी जो मुझे
भीड़ में खुद को ढूँढता हूँ मैं

अस्ल में अब ग़ज़ल नहीं कहता
खून दिल का निचोड़ता हूँ मैं