भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"महफ़िल में तनहा रहता हूँ / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>महफ़िल में तन्हा रहता हूँ देखो मै क्या क्या सहता हूँ जब पुख्ता …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:28, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण
महफ़िल में तन्हा रहता हूँ
देखो मै क्या क्या सहता हूँ
जब पुख्ता बुनियाद है मेरी
फिर क्यों खंडहर सा ढहता हूँ
लफ्फाजों की इस दुनिया में
इक मैं हूँ जो सच कहता हूँ
तुम हँसते हो फूलों जैसे
मैं आँसू आँसू बहता हूँ
बाहर से हूँ ठंडा- ठंडा
अन्दर से कितना दहता हूँ