भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक मंज़र / साहिर लुधियानवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Singhpratapus (चर्चा | योगदान) |
Singhpratapus (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
उफक के दरीचे से किरणों ने झांका | उफक के दरीचे से किरणों ने झांका | ||
− | फ़ज़ा तन गई, रास्ते मुस्कुराये | + | फ़ज़ा तन गई, रास्ते मुस्कुराये |
+ | |||
+ | |||
+ | सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर | ||
+ | |||
+ | जवां शाख्सारों ने घूँघट उठाये | ||
+ | |||
+ | |||
+ | परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके | ||
+ | |||
+ | पुरअसरार लै में रहट गुनगुनाये | ||
+ | |||
+ | |||
+ | हसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से | ||
+ | |||
+ | लिपटने लगे सब्ज पेड़ों के साए | ||
+ | |||
+ | |||
+ | वो दूर एक टीले पे आँचल सा झलका | ||
+ | |||
+ | तसव्वुर में लाखों दिए झिलमिलाये |
21:47, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण
उफक के दरीचे से किरणों ने झांका
फ़ज़ा तन गई, रास्ते मुस्कुराये
सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाख्सारों ने घूँघट उठाये
परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके
पुरअसरार लै में रहट गुनगुनाये
हसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से
लिपटने लगे सब्ज पेड़ों के साए
वो दूर एक टीले पे आँचल सा झलका
तसव्वुर में लाखों दिए झिलमिलाये