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"अब न किस्से छेड़ राजा रानियों के / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>अब न किस्से छेड़ राजा रानियों के लोग भूखे हैं बहुत इन बस्तियों …)
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22:44, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण

अब न किस्से छेड़ राजा रानियों के
लोग भूखे हैं बहुत इन बस्तियों के

रौशनी यह आँख में चुभने लगी है
खींच दो परदे जरा इन खिडकियों के

ठीक से बरसात तो होने न पाई
पर निकल आये हैं लेकिन चीटियों के

मत उन्हें अब अम्न के पैगाम भेजो
पुर्जे कर वो फेंक देंगे चिट्ठियों के

हमने चुप रहकर सहे हैं जुल्म सारे
हम ही अपराधी हैं अगली पीढ़ियों के

बेसबब चिंगारियों का नाम मत लो
हैं यहाँ बस ढेर सुखी लकड़ियों के

यूं बहुत छोटा है लेकिन नोटबुक पर
नाम वह लिखने लगा है लड़कियों के