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"वक़्त का तीर चल गया देखो / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>वक्त का तीर चल गया देखो पल में मंजर बदल गया देखो उसकी नजरों में …)
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22:50, 29 दिसम्बर 2010 का अवतरण

वक्त का तीर चल गया देखो
पल में मंजर बदल गया देखो

उसकी नजरों में वो हरारत थी
मोम सा मैं पिघल गया देखो

हौंसला ठोकरों से लेकर मैं
गिरते गिरते संभल गया देखो

घर जलाने को वो जला तो गया
हाथ उसका भी जल गया देखो

बेवफ़ा खुद को उसने मान लिया
दिल से कांटा निकल गया देखो

तुम न आये तुम्हें न आना था
एक दिन और ढल गया देखो