भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो मेरी आँख में ख़ुशरंग ख़्वाब छोड़ गया / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem>वो मेरी आँख में खुशरंग ख़्वाब छोड़ गया उजाड़ कब्र पे ताजा गुलाब…)
(कोई अंतर नहीं)

20:47, 30 दिसम्बर 2010 का अवतरण

वो मेरी आँख में खुशरंग ख़्वाब छोड़ गया
उजाड़ कब्र पे ताजा गुलाब छोड़ गया

ये किसने उसको अँधेरे गिना दिए मेरे
वो मेरे नाम कई आफ़ताब छोड़ गया

वो खुद तो मर के सितारों में बस गया लेकिन
जमीं के हक़ में कई इंकलाब छोड़ गया

खुलूसो प्यार के औराक फाड़ कर सारे
वो मेरे हाथ में खाली किताब छोड़ गया

ख़ुशी है वस्ल की ज्यादा या गम जुदाई का
मेरे लगाने को कितना हिसाब छोड़ गया

कि रख के बंद लिफाफे में टुकड़ा पत्थर का
'अनिल' वो आज तेरे ख़त का जवाब छोड़ गया