भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अकेलापन / ओरहान वेली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=ओरहान वेली |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} Category:तुर्की भाषा …)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
एक ज़िंदा शख़्स की तलाश में
 
एक ज़िंदा शख़्स की तलाश में
 
समझ ही नहीं सकते वे सचमुच ।
 
समझ ही नहीं सकते वे सचमुच ।
 +
 +
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''
 
</poem>
 
</poem>

03:51, 2 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: ओरहान वेली  » अकेलापन

जो नहीं रहते अकेले
जान ही नहीं सकते कभी
कि कैसे ख़ामोशी से पैदा होता है डर,
कैसे बातें करता है कोई ख़ुद से
और भागता फिरता है आइनों के बीच
एक ज़िंदा शख़्स की तलाश में
समझ ही नहीं सकते वे सचमुच ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल