भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शबे गम की सहर नहीं होती / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: <poem> शबे गम की सहर नहीं होती जिन्दगी अब बसर नहीं होती यूँ तो दुनिया …)
(कोई अंतर नहीं)

07:06, 2 जनवरी 2011 का अवतरण

शबे गम की सहर नहीं होती
जिन्दगी अब बसर नहीं होती

यूँ तो दुनिया नवाजती है हमें
क़द्र घर में मगर नहीं होती

क्या बताऊँ मैं कितना डरता हूँ
मेरी बेटी जो घर नहीं होती

हर कोई पढ़ ले जिन्दगी की किताब
इतनी भी मुख़्तसर नहीं होती/>