भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आइनों का नगर देखते / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: <poem>आइनों का नगर देखते मेरा दिल झाँककर देखते दिल तो रोया मगर लब हँस…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
08:32, 2 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
आइनों का नगर देखते
मेरा दिल झाँककर देखते
दिल तो रोया मगर लब हँसे
हम हैं क्या बाहुनर देखते
पा गए सब किनारे मगर
रह गए हम भँवर देखते
देखते हैं जो मंजिल मेरी
काश मेरा सफ़र देखते
खुद को ही देखते तुम वहां
जब मेरी चश्मेतर देखते
वो गए थे जिधर से, हमें
उम्र गुजरी उधर देखते
याद आती 'अनिल' की ग़ज़ल
तुम उसे सोच कर देखते