भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"त्रासदी के गुरगो संभलो तुम / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=लाला जगदलपुरी |संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते प…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:26, 3 जनवरी 2011 का अवतरण
सांसों की गलियो, संभलो तुम,
आशा की कलियो, संभलो तुम!
बगिया में नीरस फूल तथा
कैक्टस हैं अलियो, संभलो तुम!
उन्हें रिझाया कोलाहल नें,
स्नेह की अंजलियो, संभलो तुम!
बुझा न दे तुम्हें कहीं आँसू
रोशनी के टुकडो, संभलो तुम!
सहानुभूतियों को पहिचानो
त्रासदी के गुरगो, संभलो तुम!