भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अपनी भीगी हुई पलकों पे सजा लो मुझको / नक़्श लायलपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= नक़्श लायलपुरी | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> अपनी भीगी ह…) |
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 23: | पंक्ति 23: | ||
गए सूरज की तरह लौट के आ जाऊँगा | गए सूरज की तरह लौट के आ जाऊँगा | ||
− | तुमसे मैं रूठ गया हूँ तो | + | तुमसे मैं रूठ गया हूँ तो मनालो मुझको |
एक आईना हूँ ऐ 'नक़्श' मैं पत्थर तो नहीं | एक आईना हूँ ऐ 'नक़्श' मैं पत्थर तो नहीं | ||
टूट जाऊँगा न इस तरह उछालो मुझको | टूट जाऊँगा न इस तरह उछालो मुझको | ||
</poem> | </poem> |
20:27, 3 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
अपनी भीगी हुई पलकों पे सजा लो मुझको
रिश्ताए-दर्द समझकर ही निभा लो मुझको
चूम लेते हो जिसे देख के तुम आईना
अपने चेहरे का वही अक्स बना लो मुझको
मैं हूँ महबूब अंधेरों का मुझे हैरत है
कैसे पहचान लिया तुमने उजालो मुझको
छाँओं भी दूँगा, दवाओं के भी काम आऊँगा
नीम का पौदा हूँ, आँगन में लगा लो मुझको
दोस्तों शीशे का सामान समझकर बरसों
तुमने बरता है बहुत अब तो संभालो मुझको
गए सूरज की तरह लौट के आ जाऊँगा
तुमसे मैं रूठ गया हूँ तो मनालो मुझको
एक आईना हूँ ऐ 'नक़्श' मैं पत्थर तो नहीं
टूट जाऊँगा न इस तरह उछालो मुझको