भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओरे मन / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला जगदलपुरी |संग्रह=मिमियाती ज़िन्दगी दहाड…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे | छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे | ||
− | जाल धर निकल | + | जाल धर निकल पड़े, मगन मन मछेरे |
− | पानी में संत चुप | + | पानी में संत चुप खड़े उजले-उजले, |
कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे | कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे | ||
कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की, | कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की, | ||
− | पुरवा जब बहती है | + | पुरवा जब बहती है रोज़ मुँह-अँधेरे |
− | रोशनी कहाँ तुझसे हट कर | + | रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओ रे मन |
ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे | ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे | ||
− | + | जुड़े ही नहीं ज़िद्दी, किसी वंदना में, | |
− | कैसे | + | कैसे समझाऊँ मैं हाथों को मेरे |
</poem> | </poem> |
00:39, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे
जाल धर निकल पड़े, मगन मन मछेरे
पानी में संत चुप खड़े उजले-उजले,
कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे
कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की,
पुरवा जब बहती है रोज़ मुँह-अँधेरे
रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओ रे मन
ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे
जुड़े ही नहीं ज़िद्दी, किसी वंदना में,
कैसे समझाऊँ मैं हाथों को मेरे