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"रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओरे मन / लाला जगदलपुरी" के अवतरणों में अंतर

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छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे
 
छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे
जाल धर निकल पडे, मगन मन मछेरे
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जाल धर निकल पड़े, मगन मन मछेरे
  
पानी में संत चुप खडे उजले उजले,
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पानी में संत चुप खड़े उजले-उजले,
 
कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे
 
कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे
  
 
कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की,
 
कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की,
पुरवा जब बहती है रोज मुँह अंधेरे
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पुरवा जब बहती है रोज़ मुँह-अँधेरे
  
रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओरे मन
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रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओ रे मन
 
ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे
 
ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे
  
जुडे ही नहीं जिद्दी, किसी वंदना में,
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जुड़े ही नहीं ज़िद्दी, किसी वंदना में,
कैसे समझाऊं मैं हाँथों को मेरे
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कैसे समझाऊँ मैं हाथों को मेरे
 
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00:39, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

छूट गये वनपाखी, रात के बसेरे
जाल धर निकल पड़े, मगन मन मछेरे

पानी में संत चुप खड़े उजले-उजले,
कौन सुनेगा मछली व्यर्थ किसे टेरे

कानों से टकराती सिसकियाँ नदी की,
पुरवा जब बहती है रोज़ मुँह-अँधेरे

रोशनी कहाँ तुझसे हट कर ओ रे मन
ना चंदा के घर, ना सूरज के डेरे

जुड़े ही नहीं ज़िद्दी, किसी वंदना में,
कैसे समझाऊँ मैं हाथों को मेरे