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"छुट्टियाँ होती हैं लेकिन / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
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− | + | ले गईं सब कुछ उड़ाकर | |
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− | + | बोझ सब लगते समय पर | |
+ | जी रहे बस औपचारिक | ||
+ | चिट्ठियों में हम । | ||
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12:23, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
छुट्टियाँ होती हैं लेकिन
क्या बताएँ छुट्टियों में हम
अब नहीं घर से निकलते
रंग लेकर राग लेकर
एक आदिम आग लेकर
मुट्ठियों में हम ।
धूप-झरना, फूल-पत्ते
गुनगुनाती घाटियाँ
ले गईं सब कुछ उड़ाकर
सभ्यता की आँधियाँ
घर गृहस्थी दोस्त दफ़्तर
बोझ सब लगते समय पर
जी रहे बस औपचारिक
चिट्ठियों में हम ।
कल्पनाएँ प्रेम की
संवेदनाएँ प्रेम की
विज्ञापनों में आ गईं
सारी ऋचाएँ प्रेम की
थे गीत-वंशी कहकहे
क्या-क्या नहीं भोगे सहे
ईंधन हुए
कैसा समय की
भट्ठियों में हम ।