भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कैसे कैसे लोग / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ("कैसे कैसे लोग / कैलाश गौतम" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(4 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[Category:कैलाश गौतम]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:गीत]]
+
|रचनाकार=कैलाश गौतम
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
{{KKCatNavgeet}}
 +
<poem>
 
यह कैसी अनहोनी मालिक यह कैसा संयोग
 
यह कैसी अनहोनी मालिक यह कैसा संयोग
 
+
कैसी-कैसी कुर्सी पर हैं कैसे-कैसे लोग ?
कैसी-कैसी कुर्सी पर हैं कैसे-कैसे लोग।।
+
 
+
  
 
जिनको आगे होना था
 
जिनको आगे होना था
 
 
वे पीछे छूट गए
 
वे पीछे छूट गए
 
 
जितने पानीदार थे शीशे
 
जितने पानीदार थे शीशे
 
 
तड़ से टूट गए
 
तड़ से टूट गए
 
 
प्रेमचंद से मुक्तिबोध से कहो निराला से
 
प्रेमचंद से मुक्तिबोध से कहो निराला से
 
+
क़लम बेचने वाले अब हैं करते छप्पन भोग ।।
कलम बेचने वाले अब हैं करते छप्पन भोग।।
+
 
+
  
 
हँस-हँस कालिख बोने वाले
 
हँस-हँस कालिख बोने वाले
 
 
चाँदी काट रहे
 
चाँदी काट रहे
 
+
हल की मूँठ पकड़ने वाले
हल की झूँठ पकड़ने वाले
+
 
+
 
जूठन चाट रहे
 
जूठन चाट रहे
 
 
जाने वाले जाते-जाते सब कुछ झाड़ गए
 
जाने वाले जाते-जाते सब कुछ झाड़ गए
 
+
भुतहे घर में छोड़ गए हैं सौ-सौ छुतहे रोग ।।
भुतहे घर में छोड़ गए हैं सौ-सौ छुतहे रोग।।
+
 
+
  
 
धोने वाले हाथ धो रहे  
 
धोने वाले हाथ धो रहे  
 
 
बहती गंगा में
 
बहती गंगा में
 
 
अपने मन का सौदा करते  
 
अपने मन का सौदा करते  
 
+
कर्फ्यू-दंगा में
कर्फ्यू दंगा में
+
 
+
 
मिनटों में मैदान बनाते हैं आबादी को
 
मिनटों में मैदान बनाते हैं आबादी को
 
+
लाठी आँसू गैस पुलिस का करते जहाँ प्रयोग ।।
लाठी आँसू गैस पुलिस का करते जहाँ प्रयोग।।
+
</poem>

12:58, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण

यह कैसी अनहोनी मालिक यह कैसा संयोग
कैसी-कैसी कुर्सी पर हैं कैसे-कैसे लोग ?

जिनको आगे होना था
वे पीछे छूट गए
जितने पानीदार थे शीशे
तड़ से टूट गए
प्रेमचंद से मुक्तिबोध से कहो निराला से
क़लम बेचने वाले अब हैं करते छप्पन भोग ।।

हँस-हँस कालिख बोने वाले
चाँदी काट रहे
हल की मूँठ पकड़ने वाले
जूठन चाट रहे
जाने वाले जाते-जाते सब कुछ झाड़ गए
भुतहे घर में छोड़ गए हैं सौ-सौ छुतहे रोग ।।

धोने वाले हाथ धो रहे
बहती गंगा में
अपने मन का सौदा करते
कर्फ्यू-दंगा में
मिनटों में मैदान बनाते हैं आबादी को
लाठी आँसू गैस पुलिस का करते जहाँ प्रयोग ।।