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नौरंगिया / कैलाश गौतम

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{{KKCatGeet}}<poem>देवी -देवता नहीं मानती, छक्का -पंजा नहीं जानती  
ताकतवर से लोहा लेती, अपने बूते करती खेती,
मरद निखट्टू जनख़ा जोइला, लाल न होता ऐसा कोयला,
उसको भी वह शान से जीती, संग-संग खाती, संग-संग पीती
गाँव गली की चर्चा में वह सुर्ख़ी-सी अख़बार की है
नौरंगिया गंगा पार की है ।
मरद निखट्टू जनखा जोइला, लाल न होता ऐसा कोयला,  उसको भी वह शान से जीती, संग-संग खाती संग-संग पीती गांव गली की चर्चा में वह सुर्खी सी अखबार की है नौरंगिया गंगा पार की है।  कसी देह औ’ भरी जवानी शीशे के सांचे साँचे में पानी सिहरन पहने हुए अमोले काला भंवरा मुंह भँवरा मुँह पर डोले सौ-सौ पानी रंग धुले हैं , कहने को कुछ होठ खुले हैं अद्भुत है ईश्वर की रचना , सबसे बड़ी चुनौती बचना जैसी नीयत लेखपाल की वैसी ठेकेदार की है।है ।नौरंगिया गंगा पार की है।   जब देखो तब जांगर पीटे, हार न माने काम घसीटेहै ।
जब देखो तब जाँगर पीटे, हार न माने काम घसीटे
जब तक जागे, तब तक भागे, काम के पीछे, काम के आगे
बिच्छू, गोंजर, साँप मारती, सुनती रहती विविध-भारती
बिल्कुल है लाठी सी सीधी, भोला चेहरा बोली मीठी
आँखों में जीवन के सपने तैय्यारी त्यौहार की है ।
नौरंगिया गंगा पार की है ।
बिच्छू गोंजर सांप मारती सुनती रहती विविध भारती बिल्कुल है लाठी सी सीधी भोला चेहरा बोली मीठी आंखों में जीवन के सपने तैय्यारी त्यौहार की है। नौरंगिया गंगा पार की है।  ढहती भीत पुरानी छाजन , पकी फसल फ़सल तो खड़े महाजन गिरवी गहना छुड़ा न पाती , मन मसोस फिर -फिर रह जाती कब तक आखिर आख़िर कितना जूझे , कौन बताये बताए किससे पूछे जाने क्या-क्या टूटा-फूटा , लेकिन हंसना हँसना कभी न छूटा।छूटापैरों में मंगनी की चप्पल , साड़ी नई उधार की है।है ।
नौरंगिया गंगा पार की है।
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