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"मेरी नींदः रेत की मछली / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
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सबसे ज़्यादा धोबी की ही | सबसे ज़्यादा धोबी की ही | ||
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मुखिया खाते दूध भात | मुखिया खाते दूध भात | ||
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हम धोखा खाते हैं | हम धोखा खाते हैं | ||
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घर अलगाते हैं | घर अलगाते हैं | ||
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13:23, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
मेरी नींद रेत की मछली हुई मसहरी में ।
धान पान थे खेत हमारे
नहरें लील गई
जैसे फूले कमल
ताल की लहरे लील गईं
आग लगी है घर की मीठी गंगा लहरी में ।।
कालिख झरती धूप
यहाँ की हवा विषैली है
सबसे ज़्यादा धोबी की ही
चादर मैली है
दिखलाई देते हैं तारे भरी दुपहरी में ।।
मुखिया खाते दूध भात
हम धोखा खाते हैं
वहीं पंच-परमेश्वर हैं जो
घर अलगाते हैं
जितनी सड़कें नई बनीं सब गईं कचहरी में ।