"चल मन, उठ अब तैयारी कर / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर
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कुछ कच्ची - कुछ पक्की तिथियाँ | कुछ कच्ची - कुछ पक्की तिथियाँ | ||
कुछ खट्टी - मीठी स्मृतियाँ | कुछ खट्टी - मीठी स्मृतियाँ | ||
स्पष्ट दीखते कुछ चेहरे | स्पष्ट दीखते कुछ चेहरे | ||
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है भीड़ बहुत आगे - पीछे, | है भीड़ बहुत आगे - पीछे, | ||
− | तू, फिर भी आज अकेला | + | तू, फिर भी आज अकेला है । |
− | + | माँ की वो थपकी थी न्यारी | |
नन्ही बिटिया की किलकारी | नन्ही बिटिया की किलकारी | ||
छोटे बेटे की नादानी, | छोटे बेटे की नादानी, | ||
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चल इन सबसे अब दूर निकल, | चल इन सबसे अब दूर निकल, | ||
− | दुनिया यह उजड़ा मेला | + | दुनिया यह उजड़ा मेला है । |
कुछ कड़वे पल संघर्षों के | कुछ कड़वे पल संघर्षों के | ||
− | कुछ छण ऊँचे | + | कुछ छण ऊँचे उत्कर्षों के |
कुछ साल लड़कपन वाले भी | कुछ साल लड़कपन वाले भी | ||
कुछ अनुभव बीते वर्षों के | कुछ अनुभव बीते वर्षों के | ||
अब इन सुधियों के दीप बुझा | अब इन सुधियों के दीप बुझा | ||
− | आगे आँधी का रेला | + | आगे आँधी का रेला है । |
जीवन सोते जगते बीता | जीवन सोते जगते बीता | ||
खुद अपने को ठगते बीता | खुद अपने को ठगते बीता | ||
− | धन-दौलत, शौहरत , सपनो के | + | धन-दौलत, शौहरत, सपनो के |
आगे पीछे भगते बीता | आगे पीछे भगते बीता | ||
अब जाकर समझ में आया है | अब जाकर समझ में आया है | ||
− | यह दुनिया मात्र झमेला है | + | यह दुनिया मात्र झमेला है । |
झूठे दिन, झूठी राते हैं | झूठे दिन, झूठी राते हैं | ||
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अब तक यहाँ जो झेला है । | अब तक यहाँ जो झेला है । | ||
− | इससे पहले तन सड़ | + | इससे पहले तन सड़ जाए |
− | मुट्ठी से रेत बिखर | + | मुट्ठी से रेत बिखर जाए |
पतझर आने से पहले ही | पतझर आने से पहले ही | ||
− | पत्ता डाली से झर | + | पत्ता डाली से झर जाए |
उससे पहले अंतिम पथ पर | उससे पहले अंतिम पथ पर | ||
− | चल, चलना तुझे अकेला | + | चल, चलना तुझे अकेला है । |
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20:26, 4 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
चल मन, उठ अब तैयारी कर
यह चला - चली की वेला है ।
कुछ कच्ची - कुछ पक्की तिथियाँ
कुछ खट्टी - मीठी स्मृतियाँ
स्पष्ट दीखते कुछ चेहरे
कुछ धुँधली होती आकृतियाँ
है भीड़ बहुत आगे - पीछे,
तू, फिर भी आज अकेला है ।
माँ की वो थपकी थी न्यारी
नन्ही बिटिया की किलकारी
छोटे बेटे की नादानी,
एक घर में थी दुनिया सारी
चल इन सबसे अब दूर निकल,
दुनिया यह उजड़ा मेला है ।
कुछ कड़वे पल संघर्षों के
कुछ छण ऊँचे उत्कर्षों के
कुछ साल लड़कपन वाले भी
कुछ अनुभव बीते वर्षों के
अब इन सुधियों के दीप बुझा
आगे आँधी का रेला है ।
जीवन सोते जगते बीता
खुद अपने को ठगते बीता
धन-दौलत, शौहरत, सपनो के
आगे पीछे भगते बीता
अब जाकर समझ में आया है
यह दुनिया मात्र झमेला है ।
झूठे दिन, झूठी राते हैं
झूठी दुनियावी बाते हैं
अंतिम सच केवल इतना है
झूठे सब रिश्ते- नाते हैं
भूल के सब कुछ छोड़ निकल
अब तक यहाँ जो झेला है ।
इससे पहले तन सड़ जाए
मुट्ठी से रेत बिखर जाए
पतझर आने से पहले ही
पत्ता डाली से झर जाए
उससे पहले अंतिम पथ पर
चल, चलना तुझे अकेला है ।