भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आप से तुम, तुम से तू , कहने लगे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> आप से तुम…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:12, 4 जनवरी 2011 का अवतरण
आप से तुम, तुम से तू , कहने लगे
छू के मुझको, मुझको छू, कहने लगे
पहले अपनी जान कहते थे मुझे
अब वो जाने आरज़ू कहने लगे
आपको देखा तो कुछ ऐसा लगा
मिलते थे हम कू-ब-कू कहने लगे
तुम हो मेरी ज़िंदगी का माहसल
आज कल वो रूबरू कहने लगे
दिल से दिल जब मिल गए, सब मिल गया
हो गए हम सुर्ख़रू कहने लगे
है हमे तुमसे मुहब्बत वो भी अब
हाथ उठाकर क़िबला-रू कहने लगे
इश्क़ में ये दिल की महवीयत 'रक़ीब'
ख़ामशी को गुफ़्तगू कहने लगे