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तेवरी काव्यांदोलन

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 == तेवरी काव्यांदोलनः उद्भव और विकास== 
११ जनवरी, १९८१ को पुरुषोत्तम दास टण्डन हिन्दी भवन, मेरठ के सभागार में लगभग पचास रचनाकारों की एक गोष्ठी में तेवरी काव्यान्दोलन की भूमिका बनी। इसमें बृ.पा.शौरमी ने कविता की वर्तमान स्थिति को लेकर कुछ चिन्ताएं व्यक्त कीं और ऋषभ देव शर्मा ने "नये कलम-युद्ध का उद्‍घोष" शीर्षक एक पर्चा प्रस्तुत किया जिसमें नई धारदार अभिव्यक्ति वाले रचनाकर्म की आवश्यकता को प्रतिपादित किया गया और ऐसी रचनाओं के लिए ‘तेवरी’ नाम प्रस्तुत किया गया।
अब तक प्रकाशित रचनाओं को आधार पर तेवरी के चिन्तन के मुख्य बिन्दु इस प्रकार प्रस्तुत किए जा सकते हैं-
'''अव्यवस्था के विरुद्ध अभियान'''
नवें दशक के प्रारम्भ में सामने आया तेवरी काव्यान्दोलन सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक अव्यवस्था के विरुद्ध तीव्र अभियान चलाने का पक्षपाती है। आज का मनुष्य सभी ओर से घोर अव्यवस्था से घिरा हुआ है और उसके भीतर व्यापक स्तर पर संघर्ष छिड़ा हुआ है। तेवरी इस संघर्ष को अभिव्यक्त करती है। वह स्थितियों के यथार्थ विश्लेषण को प्रस्तुत करते हुए मनुष्य को परूष तेवर देना चाहती है- शोषण, दमन, भूख, उत्पीड़ा, बदहाली, कंगाली का/ कब से ना जाने बनकर इतिहास खड़ा है होरीराम/ आज नहीं तो कल विरोध हर अत्याचारी का होगा/ अब तो मन में बांधे यह विश्वास खड़ा है होरीराम।
तेवरी की मान्यता है कि इस समय अव्यवस्था के विरोध में खड़ा होना प्रेम और श्रृंगार की वायवी बातें करने से अधिक महत्वपूर्ण है।