भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लौट कर आना था, लो आ गया, आने वाला / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> लौट कर आन…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:35, 6 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
लौट कर आना था, लो आ गया, आने वाला
"छोड़ कर घर को कहाँ जाएगा जाने वाला"
भूल कर शिकवे गिले आ जा मेरी बाहों में
मैं ही हूँ जग में तुम्हें दिल से लगाने वाला
उम्र भर साथ निभाने की क़सम खाई है
एक मैं ही हूँ तेरा साथ निभाने वाला
माँ तो सोई है जनम दे के हमेशा के लिए
लोरियां गा के है अब कौन सुलाने वाला
तुम ये क्या रूठे के वो रूठ गया दुनिया से
अब न आएगा कभी तुमको मनाने वाला
बोझ ग़म का है गरीबों ही की क़िस्मत में 'रक़ीब'
कोइ ज़रदार ये कब बोझ उठाने वाला