भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुझको दिलबर तो मिला था, क्या हुआ / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> तुझको दि…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:38, 7 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
तुझको दिलबर तो मिला था, क्या हुआ
प्यार का गुल तो खिला था, क्या हुआ
दूर रहकर ज़िन्दगी की आरज़ू
ख़्वाब ही में देखता था, क्या हुआ
मंज़िलें अपनी अलग क्यों हो गयीं
जब के इक ही रास्ता था, क्या हुआ
कारवाँ जाकर भी वापस आ गया
मैं वहीं तन्हा खड़ा था, क्या हुआ
ज़िन्दगी में और भी ग़म थे बहुत
ग़म तेरा तनहा नहीं था, क्या हुआ
बेबसी के आँसुओं का ग़म न कर
एक तू तन्हा नहीं था, क्या हुआ
जुस्तज़ू है उम्र भर की तू मेरी
मैं तुझे ढूँढा किया था, क्या हुआ
कल जो अपना था, अब अपना है 'रक़ीब'
दिल तो उसका आईना था, क्या हुआ