भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तज़करा है तेरा मिसालों में / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> तज़करा ह…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:55, 7 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
तज़करा है तेरा मिसालों में
तू है बेशक परी जमालों में
नींद क्योंकर ख़फ़ा है आँखों से
अब तो आती है बस ख़यालों में
फूल बनना मुझे गवारा है
तू जो मुझको लगाए बालों में
कुछ ज़वाबात ऐसे होते हैं
जो छुपे होते हैं सवालों में
रंग लें, क्यों न अपने जीवन को
आज रंगों में और गुलालों में
कल अंधेरों में लोग लुटते थे
आज लुटने लगे उजालों में
आज उकता के चल दिए देखो
छोड़कर ज़िन्दगी बवालों में
हर कोई जाएगा यहाँ से 'रक़ीब'
हम भी हैं याँ से जाने वालों में