भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"राहे वफ़ा में जो चलता है तनहा तनहा / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> राहे वफ़…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:48, 7 जनवरी 2011 के समय का अवतरण


राहे वफ़ा में जो चलता है तनहा तनहा
सूरज पश्चिम में ढलता है तनहा तनहा

उजियारे के चाहने वालो सोचा भी है
दीपक क्या कोई जलता है तनहा तनहा

होटों पर मुस्कान है फ़ीकी, पलकें सूखी
मन में कोई दुःख पलता है तनहा तनहा

तेरे इतराने हँसने पर सब हँसते हैं
मुझको जाने क्यों खलता है तनहा तनहा

साये के संग तेरी यादें भी होती हैं
मेरा साया जब चलता है तनहा तनहा

मौका पाकर जो खोता है सुन लो 'रक़ीब'
हाथ हमेशा वो मलता है तनहा तनहा