भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मौत इक दिखावा है मर के भी नहीं मरते / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> मौत इक द…)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:10, 7 जनवरी 2011 के समय का अवतरण


मौत इक दिखावा है मर के भी नहीं मरते
ज़िन्दगी के दीवाने मौत से नहीं डरते

डर है तुमको दुनिया का इश्क़ क्या करोगे तुम
इश्क़ में जो डरते हैं इश्क़ वो नहीं करते

वो भी क्या करें उन पर मेहरबाँ जवानी है
पाँव वो ज़मीं पर अब इसलिए नहीं रखते

प्यार करते हो, मुझे ज़िन्दगी भी कहते हो
फिर मेरी सितारों से माँग क्यों नहीं भरते

जान अपनी देते हैं भूख में मगर फिर भी
कुछ दरिन्द ऐसे हैं घास जो नहीं चरते

नफ़रतों के सागर में जो हसीन डूबे हैं
आँसुओं से वह आँचल तर कभी नहीं करते

मैं हबीब समझा था तुम 'रक़ीब' हो शायद
इसलिए मोहब्बत का दम कभी नहीं भरते