भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हम कहते हैं बात बराबर / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> हम कहते …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:49, 7 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
हम कहते हैं बात बराबर
छोटी बड़ी है जात बराबर
माँ और बाप हैं इक जुड़वां के
पैदा साथ न तात बराबर
दोनों हैं इक डाल के पत्ते
दोनों की क्या बात बराबर
देखो गज मूषक में अन्तर
कब दोनों के दांत बराबर
बाप हैं दस के निर्वंसी भी
होंगे कैसे नात बराबर
काक और कोयल दोनों बोलें
कहिये क्यों न गात बराबर
होता है इक रोज बरस में
जिसका दिन और रात बराबर
चाहे खा लें काजू पिस्ता
है सबकी अवकात बराबर
कोइ न जाने किस जा खड़ी है
मौत लगाए घात बराबर
नैन 'रक़ीब' सजल हैं तेरे
क्यों ना हो फिर मात बराबर