भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हँसी आने पे चेहरे की उदासी छूट जाती है / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद' संग्रह= }} {{KKCatGazal}} <poem> हँसी आने प…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:43, 8 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
रचनाकार=राम प्रकाश 'बेखुद' संग्रह= }} साँचा:KKCatGazal
हँसी आने पे चेहरे की उदासी छूट जाती है
कि जैसे जख्म भर जाने पे पपड़ी छूट जाती है
वही इक रोज खो जाता है इस दुनिया के मेले में
कि जिस बच्चे से उसकी माँ की उंगली छूट जाती है
कभी सोचा है उस दिन उसके घर चूल्हा नहीं जलता
किसी मजदूर की जिस दिन दिहाड़ी छूट जाती है
किताबें इतनी महंगी फीस कुछ इतनी ज्यादा है
न जाने कितने बच्चों की पढाई छूट जाती है
किसी का रोते रोते भीग जाता है यहाँ दामन
किसी की राह तकते तकते मेहंदी छूट जाती है
किसी बिरहन से पूछो कैसी होती है शबे फुरकत
कि काजल आँख का माथे की बिंदी छूट जाती है
चले आओ कहीं ऐसा न हो बीमार उठ जाए
ज़रा सी देर हो जाने पे गाडी छूट जाती है