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आज तुम्हारा जन्म हुआ था इसी देश में
राष्ट्रपिता होने के पहले कठिन क्लेश में
तब यह भारत सिंह-दंत-नख से शासित था
परदेसी पामर प्रसाद से परितापित था
तुमने देखा नय के ऊपर अनय विराजा
दहन-दमन का बजा रहा था दुर्मद बाजा
जन-प्रतिजन आकुल रोता था दलित दीन था
रूप-राग-जीवन मृणाल हो गया क्षीण था
सह न सके तुम असहनीय दुख-दव का दंशन
दिन प्रतिदिन का क्षण-प्रतिक्षण का कर्षण-घर्षण
तभी सत्य के परम अहिंसक तुम अवतारी
असहयोग ले बढ़े, प्रवंचक सत्ता हारी
शान्ति हुई संपन्न, क्रांतियाँ जहाँ न जीतीं
हुआ नया भिनसार-अमा की घड़ियाँ बीतीं
देश हुआ इस जन्म-दिवस पर अब फिर प्रमुदित
नहीं हरा सकता है कोई-हम हैं अविजित
रचनाकाल: २६-०९-१९६१