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"समय का संविधान / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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14:06, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
वृत्त पर वृत्त
खींचता चला जा रहा है मनुष्य
और फँसता चला जा रहा है वह
सीधी लकीर की खोज में
समय का संविधान
कोई रास्ता नहीं देता
ज्यामितिक हो गया है मनुष्य
वृत्त में जीने के लिए
और वृत्त में मरने के लिए
सीधी लकीर में चलने के लिए
रचनाकाल: १३-१०-१९६५