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"लकीरें काटती हैं / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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14:22, 9 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
लकीरें काटती हैं लकीरों को
वक्र होकर
उलटकर
मुँह से
पूँछ से
पेट से
आदमियत से वंचित
पशुत्व की प्रतीक
स्रष्टा को सरापतीं
फटे सूर्य की दुनिया में
रचनाकाल: ०६-०८-१९६७